भारत-अमेरिका के संबंधों में हाल के समय में कुछ तनाव देखे जा रहे हैं, और इस पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट और तर्कसंगत बयान दिए हैं। उन्होंने कहा कि भारत के लिए कुछ मुद्दे प्राथमिकता रखते हैं, जिन्हें समझौते की बातचीत में ध्यान में रखा जाएगा। इस संदर्भ में, जयशंकर ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया है, जो इन रिश्तों को और मजबूत बनाने के लिए आवश्यक हैं। उनके विचार न केवल वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करते हैं, बल्कि भारत की विदेश नीति की दिशा को भी उजागर करते हैं।
भारत और अमेरिका के व्यापार संबंधों में चुनौतियाँ
जयशंकर ने शनिवार को कहा कि भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते पर बातचीत में भारत की कुछ रेड लाइन्स हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार किसानों तथा छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगी। यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लागू होने वाला है।
भारत-अमेरिका के रिश्तों में समस्याएँ तब स्थिति में आईं जब अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया। इसमें रूस से कच्चे तेल की खरीद के चलते अतिरिक्त 25 प्रतिशत शुल्क भी शामिल है। यह शुल्क पहले ही लागू हो चुका है और अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त से प्रभावी होगा।
कृषि और डेयरी क्षेत्र पर भारत का रुख
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते की वार्ता उस समय अटक गई जब भारत ने अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को खोलने से इनकार किया। जयशंकर ने कहा कि व्यापार भारत के लिए वास्तविक और सबसे बड़ा मुद्दा है। उन्होंने दोहराया कि सभी विषयों पर बात की जा रही है, लेकिन किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा करना अनिवार्य है।
- भारत की आर्थिक स्वायत्तता
- किसानों के हितों की सुरक्षा
- कृषि और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ
रूस से कच्चे तेल की खरीद के मुद्दे पर जयशंकर का बयान
जयशंकर ने रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर उठते सवालों का सामना किया। उन्होंने कहा कि यह मजेदार है कि अमेरिकी प्रशासन जो खुद को प्रो-बिजनेस बताता है, दूसरों पर व्यापार करने का आरोप लगा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर अमेरिका को भारत से तेल या रिफाइंड उत्पाद खरीदने में दिक्कत है, तो कोई भी उन्हें मजबूर नहीं कर रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि रूस से कच्चे तेल की खरीद भारत-अमेरिका संबंधों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के तहत, यह निर्णय लिया गया है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के लिए तेल खरीदेगा। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में रूस से तेल की खरीद में वृद्धि हुई है, जो भारत के हितों के अनुसार है।
पाकिस्तान के साथ संबंधों में मध्यस्थता का मुद्दा
जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर वाशिंगटन का रुख भारत-अमेरिका संबंधों का तीसरा बड़ा मुद्दा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत किसी भी प्रकार की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर पिछले 50 वर्षों से राष्ट्रीय सहमति बनी हुई है।
- मध्यस्थता की अस्वीकृति
- भारत-पाकिस्तान संबंधों का जटिल इतिहास
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भारत का दृष्टिकोण
जयशंकर ने इस तथ्य को भी खारिज किया कि भारत और चीन के संबंधों में सुधार इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत-अमेरिका संबंध तनाव में हैं। उन्होंने कहा कि हर परिस्थिति का जवाब अपने संदर्भ में देना पड़ता है।
अर्थव्यवस्था और व्यापार पर अमेरिकी नीतियों का प्रभाव
जयशंकर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की विश्व से निपटने की शैली पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह शैली परंपरागत अमेरिकी विदेश नीति से भिन्न है। उन्होंने कहा कि यह बदलाव केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया इसका सामना कर रही है।
सच यह है कि अमेरिका के व्यापार नीतियों का प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत जैसे विकासशील देशों को इस स्थिति में सतर्क रहना होगा।
जयशंकर ने कहा कि, "हमने ऐसा कोई अमेरिकी राष्ट्रपति पहले नहीं देखा जिसने इतनी सार्वजनिक रूप से विदेश नीति चलाई हो।" यह बयान इस बात का संकेत है कि भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए और अधिक सक्रिय होना चाहिए।
भारत की स्वतंत्रता और वैश्विक संबंध
जयशंकर ने भारत की स्वतंत्रता को भी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत केवल अपने ही नहीं, बल्कि वैश्विक हितों को भी ध्यान में रखकर फैसले करता है।
इस संदर्भ में, उन्होंने कहा कि "यह हमारा अधिकार है" और यह भी कि भारत ने कभी भी अपनी जरूरतों को छिपाया नहीं। यह बात भारत के लिए अपने संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने में मदद कर सकती है।
अंततः, जयशंकर का बयान संकेत करता है कि भारत अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए दृढ़ है और अमेरिका के साथ किए गए समझौतों में किसी भी प्रकार की समझौता नहीं करेगा। यह स्थिति भारत की विदेश नीति को और अधिक मजबूत बनाती है और इसे वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती है।