भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर में गहराई से जुड़े विषयों पर चर्चा करना हमेशा महत्वपूर्ण होता है। हाल ही में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। उनके विचार न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी विचारणीय हैं।
भागवत के अनुसार, अविभाजित भारत में रहने वाले सभी लोगों का DNA एक जैसा है, जो 40,000 वर्षों की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। यह विचार हमें न केवल हमारे अतीत की ओर ले जाता है, बल्कि वर्तमान और भविष्य की सामाजिक एकता के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है।
DNA की समानता: एक सांस्कृतिक पहचान
मोहन भागवत ने विज्ञान भवन में आयोजित '100 इयर्स जर्नी ऑफ RSS: न्यू होराइजन्स' कार्यक्रम में यह विचार व्यक्त किया। उनके अनुसार, भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि वे सभी निवासियों को एक समान पहचान देती हैं।
- DNA की समानता केवल जैविक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है।
- समाज में मेलजोल और एकजुटता का मूल्यांकन करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण आधार है।
- यह विचार एकता और समरसता को बढ़ावा देता है।
भागवत ने कहा कि "हमारा DNA भी एक ही है। मेलजोल से जीना ही हमारी संस्कृति है।" यह विचार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे हम अपने पूर्वजों की परंपराओं को आगे बढ़ा सकते हैं।
हिंदू की परिभाषा: भौगोलिक और पारंपरिक दृष्टिकोण
भागवत ने हिंदू की परिभाषा को भौगोलिक और पारंपरिक दृष्टिकोण से स्पष्ट किया। उनके अनुसार, कुछ लोग जानबूझकर खुद को हिंदू मानने से इंकार करते हैं, जबकि कुछ को इसके महत्व की जानकारी नहीं होती।
उनका कहना है कि "हिंदू" शब्द बाहरी लोगों द्वारा दिया गया है, और वास्तविकता में, हिंदू अपने मार्ग पर चलते हुए दूसरों का सम्मान करते हैं। यह विचार हमें यह समझने में मदद करता है कि हम सभी एक ही ईश्वरीय शक्ति से जुड़े हैं।
RSS का उद्देश्य: भारत को विश्वगुरु बनाना
आज़ादी के 75 वर्षों के दौरान, भागवत ने यह स्पष्ट किया कि भारत वह स्थान प्राप्त नहीं कर सका, जो उसे होना चाहिए था। उन्होंने कहा, "RSS का उद्देश्य भारत को 'विश्वगुरु' बनाना है।" यह विचार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे हम अपने देश को वैश्विक मंच पर उभार सकते हैं।
- सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है।
- हर व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है।
- नेता और सरकार केवल सहयोगियों की भूमिका निभाते हैं।
भागवत ने यह भी बताया कि समाज के उत्थान के लिए हमें सामूहिक प्रयास करना होगा। यह केवल कुछ लोगों का काम नहीं है, बल्कि सभी का योगदान आवश्यक है।
समाज में समानता का महत्व
भागवत ने अपने भाषण में यह भी बताया कि भारतीय समाज में भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा, "प्राचीन काल से भारतवासियों ने कभी भेदभाव नहीं किया।" यह विचार हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम कैसे एक समरस समाज का निर्माण कर सकते हैं।
हमेशा से, भारतीय संस्कृति ने समन्वय और एकता को बढ़ावा दिया है। यह विचार हमें अपने समाज में विविधता को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है।
संवाद का महत्व: समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़ना
RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि भागवत आगामी तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों के प्रमुख लोगों से संवाद करेंगे। यह संवाद देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने का एक अवसर होगा।
इस प्रकार के संवाद से न केवल विचारों का आदान-प्रदान होगा, बल्कि समाज में एकता और सामंजस्य को भी बढ़ावा मिलेगा।
भागवत के विचार इस बात का प्रमाण हैं कि हमारी सांस्कृतिक और जैविक पहचान हमें एकजुट करती है। इस पहचान को समझना और इसे आगे बढ़ाना आवश्यक है, ताकि हम एक मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण कर सकें।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए, आप इस वीडियो को देख सकते हैं:
इस प्रकार, भागवत के विचार हमारे समाज की जड़ों को समझने और उन्हें आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। यह न केवल हमारे अतीत को दर्शाता है, बल्कि भविष्य की दिशा को भी निर्धारित करता है।