हाल के दिनों में, भारतीय न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण बहस छिड़ गई है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की जजों की नियुक्तियों को लेकर गंभीर मतभेद उभरे हैं। इस मुद्दे ने न केवल न्यायिक प्रणाली के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे न्यायपालिका के भीतर सत्ता संघर्ष और क्षेत्रीय असंतुलन की चिंताओं की वजह से प्रगति प्रभावित हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में विवादित सिफारिश
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, विपुल एम. पंचोली, को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की। लेकिन इस सिफारिश पर कॉलेजियम के एक सदस्य, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, ने कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह कदम न्यायपालिका में क्षेत्रीय असंतुलन को बढ़ावा देगा, क्योंकि पहले से ही गुजरात हाईकोर्ट से दो जज, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस एन.वी. अंजरिया, सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत हैं।
जस्टिस नागरत्ना का यह भी तर्क है कि यदि तीसरे जज की नियुक्ति की जाती है तो इससे न केवल न्यायपालिका की कार्यक्षमता पर असर पड़ेगा, बल्कि यह कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता को भी प्रश्न के घेरे में लाएगा। उनका असहमति नोट इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वे न्यायालय में क्षेत्रीयता के मुद्दे को गंभीरता से लेते हैं।
कॉलेजियम का निर्णय और इसके प्रभाव
कॉलेजियम ने हाल ही में अपने निर्णय में यह बताया कि इसकी सिफारिशें न्याय प्रशासन की बेहतरी के लिए की जाती हैं। हालांकि, जस्टिस नागरत्ना का कहना है कि यह निर्णय गलत परंपरा की नींव रखेगा। उन्होंने बताया कि जब न्यायपालिका में पहले ही पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो, तो अतिरिक्त नियुक्तियों से न्यायिक संतुलन बिगड़ सकता है।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने अपने असहमति नोट में लिखा है कि “जस्टिस पंचोली की नियुक्ति से न केवल न्याय प्रशासन पर उल्टा असर पड़ेगा, बल्कि यह कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता को भी चुनौती देगा।” इस प्रकार के विचारों ने इस मुद्दे को और भी जटिल बना दिया है।
गुजरात हाईकोर्ट से जजों की नियुक्ति का असर
जस्टिस नागरत्ना के विरोध का एक महत्वपूर्ण बिंदु जस्टिस पंचोली के गुजरात हाईकोर्ट से पटना हाईकोर्ट तबादले की परिस्थितियों पर है। जस्टिस पंचोली को पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया था, और अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट में बुलाने की तैयारी है। यदि यह नियुक्ति होती है, तो वे अगस्त 2031 में जस्टिस जॉयमाल्य बागची के सेवानिवृत्त होने के बाद वरिष्ठतम जज बनेंगे। इस स्थिति में, उन्हें देश का मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की संभावनाएं भी बन जाती हैं।
इस प्रकार, जस्टिस नागरत्ना का तर्क है कि यह नियुक्ति गुजरात हाईकोर्ट से तीसरे जज की नियुक्ति के लिए अनुकूल माहौल नहीं बनाती है। इससे न केवल क्षेत्रीय असंतुलन में वृद्धि होती है, बल्कि यह न्यायपालिका के समक्ष भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है।
कॉलेजियम के सदस्यों की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में जजों की संख्या पांच है, जिसमें सीजेआई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना शामिल हैं। इन जजों के बीच सहमति और असहमति का मामला केवल व्यक्तिगत विचारधारा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह न्यायपालिका के संचालन और उसकी विश्वसनीयता से भी जुड़ा हुआ है।
- सीजेआई का प्रभाव: मुख्य न्यायाधीश का विचार कॉलेजियम का मुख्य ध्रुव होता है।
- सभी जजों की भूमिका: सभी जजों को अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करने का अधिकार है।
- सहमति और असहमति: कॉलेजियम में सहमति और असहमति का संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
इस मामले में जस्टिस नागरत्ना का असहमति नोट केवल व्यक्तिगत विचार नहीं, बल्कि यह न्यायपालिका की एक व्यापक समस्या का संकेत है। इस विवाद ने यह भी स्पष्ट किया है कि न्यायपालिका के भीतर मतभेद होने पर किस प्रकार से निर्णय लेना चाहिए और इसे कैसे प्रबंधित किया जाना चाहिए।
न्यायपालिका में क्षेत्रीय असंतुलन की चिंता
न्यायपालिका में क्षेत्रीय असंतुलन की चिंता कई वर्षों से उठाई जा रही है। भारतीय न्यायपालिका में विभिन्न क्षेत्रीयताओं का प्रतिनिधित्व आवश्यक है ताकि सभी नागरिकों को समान न्याय मिल सके। यदि एक विशेष क्षेत्र से अत्यधिक जजों की नियुक्ति की जाती है, तो यह अन्य क्षेत्रों के लिए अनुचित हो सकता है।
- संविधानिक अधिकार: सभी नागरिकों को समान अवसर मिलने चाहिए।
- सामाजिक न्याय: विभिन्न समुदायों का न्यायपालिका में उचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
- संतुलित निर्णय: क्षेत्रीय विविधता संतुलित निर्णय लेने में मदद करती है।
इस मुद्दे पर बहस जारी है, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या कॉलेजियम अपने निर्णयों में इन चिंताओं को ध्यान में रखेगा या नहीं। न्यायपालिका की विश्वसनीयता और उसकी कार्यप्रणाली पूरी तरह से इस पर निर्भर करती है।
इस वीडियो में जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कॉलेजियम में अपने असहमति नोट को विस्तार से समझाया है, जिसे देखना आपके लिए उपयोगी हो सकता है:
अब देखना यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इस मुद्दे पर दोबारा विचार करेगा और जस्टिस नागरत्ना के विचारों को ध्यान में लेगा या नहीं। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो भारतीय न्यायपालिका के लिए नया अध्याय खोल सकता है।