हाल के दिनों में दहेज की समस्या ने एक बार फिर से समाज का ध्यान आकर्षित किया है, खासकर निक्की भाटी के मामले ने इसकी गंभीरता को उजागर किया है। यह न केवल एक हत्या का मामला है, बल्कि यह एक सामाजिक मुद्दे का प्रतीक है जो हजारों महिलाओं की जान ले रहा है। इस लेख में हम दहेज प्रथा की काली हकीकत, संबंधित आंकड़ों और इससे निपटने के उपायों पर गहराई से चर्चा करेंगे।
निक्की भाटी का दर्दनाक मामला
26 वर्षीय निक्की भाटी की दहेज के लिए हुई हत्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। उसके छोटे बेटे का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह यह बताता है कि कैसे उसके पिता ने उसकी मां को जिंदा जला दिया। यह घटना न केवल दिल को दहला देने वाली है, बल्कि यह एक ऐसी समस्या का प्रतीक है जो दशकों से भारत में जारी है। देश में जहां कानून दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए बनाए गए हैं, वहीं हर साल हजारों महिलाएं इस प्रथा की बलि चढ़ जाती हैं।
दहेज हत्याओं के साठ प्रतिशत मामले उत्तर प्रदेश से
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में भारत में 6,450 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं, जो कि औसतन हर दिन 18 महिलाओं की जान लेती हैं। यह आंकड़ा कई सवाल खड़े करता है, खासकर जब हम देखें कि उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है। 2022 में अकेले उत्तर प्रदेश में 2,138 दहेज हत्या के मामले दर्ज हुए। इसके बाद बिहार में 1,057 और मध्य प्रदेश में 518 मामले आए।
दहेज समस्या का भूगोल
दहेज हत्याओं की समस्या केवल एक राज्य तक सीमित नहीं है। यह विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रूप में फ़ैल रही है:
- उत्तर प्रदेश: 2,138 मामले
- बिहार: 1,057 मामले
- मध्य प्रदेश: 518 मामले
- राजस्थान: 500 मामले
- पश्चिम बंगाल: 450 मामले
दक्षिण भारत में भी स्थिति अलग नहीं है, हालांकि यहां दहेज हत्याओं की संख्या अपेक्षाकृत कम है। कर्नाटक में 165, तेलंगाना में 137 और केरल में केवल 11 मामले दर्ज हुए हैं। यह स्पष्ट है कि दहेज प्रथा की समस्या देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग आकार ले रही है।
यूपी में दहेज हत्याएं: एक गंभीर संकट
पिछले पांच वर्षों (2018-2022) में उत्तर प्रदेश में 11,488 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं। इसका मतलब है कि हर दिन 6 महिलाएं दहेज प्रथा के कारण जान गंवा रही हैं। यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है, खासकर जब हम यह देखते हैं कि यूपी में देश की हर तीसरी दहेज हत्या होती है। यहाँ दहेज हत्या की दर 10.3 प्रति लाख महिलाएं है, जबकि राष्ट्रीय औसत 5.2 है।
समाज में जागरूकता की कमी
हालांकि दहेज के खिलाफ कई कानून हैं, लेकिन जागरूकता की कमी और समाज में नकारात्मक सोच इसे खत्म करने में बाधा बन रही है। एक महिला कार्यकर्ता का कहना है कि "इतनी जागरूकता के बावजूद, दहेज प्रथा अब भी एक पिछड़ी सोच है।" यह स्थिति तब और बदतर हो जाती है जब दहेज से जुड़े मामलों के खिलाफ न्याय पाने के लिए पीड़ितों को संघर्ष करना पड़ता है।
न्याय पाने की लड़ाई
दहेज से हुई मौतों पर आधिकारिक आंकड़े अक्सर राज्य स्तर पर ही मिलते हैं, जिले या शहर के आंकड़े प्राप्त करना मुश्किल होता है। पुलिस एफआईआर दर्ज करती है, लेकिन आम जनता को इन आंकड़ों तक पहुंच नहीं मिलती। इस कारण से पीड़ित परिवारों के लिए यह प्रक्रिया और अधिक कठिन हो जाती है। इसके अलावा, अदालतों पर ऐसे मामलों का बोझ बढ़ता जा रहा है। 2022 में दहेज निषेध अधिनियम के तहत 13,000 से अधिक केस दर्ज हुए, जिसका मतलब है कि हर दो घंटे में तीन नए केस दर्ज हो रहे हैं।
दहेज उत्पीड़न के मामले में मदद कैसे लें
यदि आप या आपके जानने वाले किसी दहेज उत्पीड़न का शिकार हैं, तो तत्काल मदद प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित हेल्पलाइन का उपयोग कर सकते हैं:
- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) हेल्पलाइन: 7827 170 170 (24x7)
- उत्तर प्रदेश महिला हेल्पलाइन: 181/1091
- आपातकालीन नंबर: 112
- लीगल एड सर्विसेज (NLSA): मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध है
दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए समाज को एकजुट होना होगा। यह केवल सरकारी प्रयासों पर निर्भर नहीं है, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वे इस बुराई के खिलाफ आवाज उठाएं।
इस मुद्दे पर और जानकारी के लिए, आप इस वीडियो को देख सकते हैं, जो दहेज के खिलाफ लड़ाई और इसके परिणामों पर प्रकाश डालता है:



