भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने का अवसर एक महत्वपूर्ण चौराहा है, जिसमें न केवल संघ की ऐतिहासिक यात्रा का उत्सव मनाया जा रहा है, बल्कि भविष्य के दृष्टिकोण और योजनाओं पर भी प्रकाश डाला जा रहा है। इस खास मौके पर संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में अपने विचार साझा किए, जिसमें भारत के विकास, हिंदू राष्ट्र की परिभाषा और संघ की आने वाली योजनाओं पर गहन चर्चा की गई।
संघ का ऐतिहासिक संदर्भ और योगदान
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में स्वतंत्रता संग्राम में संघ की भूमिका पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाई। हेडगेवार का आदर्श जीवन देशभक्ति और सेवा भाव से भरा हुआ था। उन्होंने कहा, "डॉ. हेडगेवार ने वंदे मातरम आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आजादी की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।"
इस संदर्भ में, भागवत ने बताया कि देश के युवा पीढ़ी को डॉ. हेडगेवार के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, जब भी स्कूलों में इंस्पेक्टर निरीक्षण के लिए आते थे, छात्रों द्वारा 'वंदे मातरम' का उद्घोष किया जाता था, जो उस समय के आंदोलन का प्रतीक था। इस तरह के प्रयासों ने न केवल स्वतंत्रता की भावना को बढ़ावा दिया, बल्कि देश के प्रति निष्ठा को भी प्रगाढ़ किया।
हिंदू राष्ट्र का अर्थ और दृष्टिकोण
मोहन भागवत ने "हिंदू राष्ट्र" की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका सत्ता से कोई सीधा संबंध नहीं है। उन्होंने यह बताया कि हिंदू राष्ट्र का अर्थ किसी विशेष धर्म, जाति या भाषा से नहीं है। यह सभी प्रजाओं के लिए समान न्याय और समानता की अवधारणा पर आधारित है।
- हिंदू राष्ट्र का उद्देश्य सभी के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना है।
- यह पंथ, संप्रदाय और भाषा में भेदभाव नहीं करता।
- यह सभी को एकत्रित करने और एकजुट करने का प्रयास करता है।
भागवत ने यह भी कहा कि संघ किसी विरोध की भावना से नहीं बना है, बल्कि यह समाज को एकजुट करने और उसकी ताकत को पहचानने का प्रयास है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, "व्यायाम का उद्देश्य केवल अपने शरीर को स्वस्थ रखना है, न कि दूसरों को नुकसान पहुँचाना। इसी तरह, संघ का उद्देश्य समाज को संगठित और सशक्त बनाना है।"
भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में संघ की योजनाएँ
मोहन भागवत ने यह स्पष्ट किया कि भारत को विश्व में एक अग्रणी स्थान प्राप्त करना चाहिए। उन्होंने कहा, "आज पूरी दुनिया एक दूसरे के करीब आ रही है, जहाँ वैश्विक संवाद और सहयोग अत्यंत आवश्यक हैं।" उन्होंने भारत की भूमिका को वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इसका उद्देश्य केवल अपने भले के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि मानवता के कल्याण के लिए होना चाहिए।
भागवत ने संघ की योजनाओं को साझा करते हुए कहा कि संगठन का उद्देश्य केवल सामाजिक और राजनीतिक उन्नति नहीं है, बल्कि यह समाज की गुणात्मक उन्नति के लिए भी है। उन्होंने कहा, "कोई भी परिवर्तन केवल समाज के सामूहिक प्रयास से आता है।" इसके लिए उन्होंने नेताओं, नीतियों, और संगठनों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
संघ का भविष्य और विकास की दिशा
मोहन भागवत ने संघ के भविष्य की योजनाओं को साझा करते हुए कहा कि सभी स्वयंसेवकों को एकजुट होकर कार्य करना होगा। उन्होंने कहा, "हमें अपने कार्यकर्ताओं को स्वयं बनाना होगा, और यही संघ की ताकत है।" संघ के विकास के लिए उन्होंने यह भी कहा कि संगठन को आत्मनिर्भर और स्वयं पर निर्भर रहना चाहिए।
उन्होंने बताया कि संघ के कार्यकर्ता शाखाओं में सक्रिय भूमिका निभाते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि संगठन की गतिविधियां समाज के विकास में सहायक हों। यह एक ऐसी दिशा है जिसमें सभी स्वयंसेवक एकजुट होकर काम करेंगे और समाज की समस्याओं का समाधान करेंगे।
समाज की भूमिका और सहभागिता
भागवत ने समाज की सहभागिता को भी महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, "समाज की गुणात्मक उन्नति के बिना कोई भी परिवर्तन संभव नहीं है।" उन्होंने यह संकेत दिया कि नेता, नीति और संगठन सभी का सहयोग आवश्यक है, लेकिन असली परिवर्तन तब ही आएगा जब समाज स्वयं अपनी जिम्मेदारियों को समझे और उन्हें निभाए।
इसके लिए उन्होंने सुझाव दिया कि समाज को अपने भीतर की खामियों को पहचानना और सुधारना होगा, ताकि देश को एक नई दिशा में ले जाया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि संघ केवल एक संगठन नहीं है, बल्कि यह एक सोच और दृष्टिकोण है जो सभी भारतीयों को एक साथ लाने का प्रयास करता है।
संघ के 100 वर्षों की यात्रा केवल एक अध्याय नहीं है, बल्कि यह एक नए युग की शुरुआत है। मोहन भागवत के विचार और दृष्टिकोण ने यह स्पष्ट किया है कि संघ का लक्ष्य केवल अपने सदस्यों को एकजुट करना नहीं, बल्कि पूरे देश को एक नई दिशा में आगे बढ़ाना है।
इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए, आप मोहन भागवत की पूरी स्पीच देख सकते हैं:
इस प्रकार, संघ के इस ऐतिहासिक अवसर से यह स्पष्ट है कि मोहन भागवत के नेतृत्व में संघ न केवल अपने अतीत को सम्मानित कर रहा है, बल्कि भविष्य के लिए एक मजबूत और सशक्त भारत की नींव भी रख रहा है।