सैलरी का 50% हिस्सा खा रही EMI नई टेंशन का कारण

सूची
  1. लोन और सैलरी के बीच का तनाव
  2. आर्थिक बदलाव और नौकरी की पुनर्विचार
  3. वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता
  4. बढ़ते तनाव और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ
  5. भविष्य की संभावनाएँ

आज के आर्थिक माहौल में, जहां लोगों की आय बढ़ रही है, वहीं लोन लेने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। कुछ लोग अपने घर का सपना पूरा करने के लिए तो कुछ अपने जीवनशैली को बेहतर बनाने के लिए लोन का सहारा ले रहे हैं। लेकिन, लोन चुकाने में जो समस्याएँ आ रही हैं, वह चिंताजनक हैं। हाल की रिपोर्टों के अनुसार, लोन की किस्तें मासिक सैलरी का 50% तक खा रही हैं।

रेनबो मनी के संस्थापक सिद्धार्थ मुकुंद ने इस विषय पर चिंता व्यक्त करते हुए एक पोस्ट में बताया कि भारत के शहरी क्षेत्रों में आर्थिक अस्थिरता की भावना बढ़ रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह स्थिति आर्थिक उतार-चढ़ाव का हिस्सा है, लेकिन इस बार का अनुभव अलग है।

लोन और सैलरी के बीच का तनाव

लोगों के लिए लोन लेना अब एक सामान्य बात बन गई है, लेकिन यह लोन चुकाने का दबाव बढ़ता जा रहा है। खासतौर पर निम्नलिखित कारणों से:

  • घर बनवाने के लिए लोन लेना
  • जीवनशैली में सुधार के लिए लोन का सहारा लेना
  • शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और अन्य आवश्यक खर्चे

बढ़ते वित्तीय दबाव के कारण, अब सैलरी का 40-50% हिस्सा ईएमआई और बीमा प्रीमियम में जा रहा है, जो स्वस्थ माने जाने वाले 25-30% से कहीं अधिक है। इस स्थिति ने नौकरी पेशा लोगों को चिंतित कर दिया है। उनके लिए अब सपना देखना मुश्किल हो गया है, क्योंकि वे केवल अपनी आजीविका चलाने की कोशिश कर रहे हैं।

आर्थिक बदलाव और नौकरी की पुनर्विचार

महामारी से पहले, लोग नौकरी बदलने के पीछे अधिकतर आर्थिक लाभ की तलाश में रहते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। मुकुंद के अनुसार, नौकरी बदलने की प्रेरणा अब आत्मविश्वास से कम और वित्तीय मजबूरी से अधिक जुड़ी हुई है।

नौकरी की सुरक्षा की भावना भी कम हो गई है। बड़ी टेक कंपनियों में वेतन वृद्धि 5% से भी कम रह गई है, जिससे कर्मचारियों में तनाव बढ़ गया है। इस बदलाव के कारण लोग अपनी नौकरी को बदलने में हिचकिचा रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि वर्तमान में स्थिरता बनाए रखना अधिक महत्वपूर्ण है।

वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता

कर्मचारियों को अब अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इनमें शामिल हैं:

  • बजट बनाना और खर्चों पर नियंत्रण रखना
  • अवश्यकता से अधिक लोन ना लेना
  • बचत को प्राथमिकता देना
  • स्वास्थ्य और परिवार को प्राथमिकता देना

कई लोग अब केवल 25-30% सैलरी ग्रोथ की अपेक्षा कर रहे हैं, ताकि वे अपने बुनियादी खर्चों को पूरा कर सकें। इस स्थिति ने एक नया आर्थिक संकट पैदा कर दिया है, जिसमें लोग अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किसी भी स्थिति में काम करने के लिए तैयार हैं।

बढ़ते तनाव और सामाजिक प्रतिक्रियाएँ

मुकुंद की पोस्ट पर कई प्रतिक्रियाएं आई हैं। एक उपयोगकर्ता ने लिखा कि नौकरी बदलना अब अधिकतर जीवनशैली से जुड़ गया है, न कि महत्वाकांक्षा से। परिवार अब अपनी आय में कटौती कर रहे हैं और महत्वाकांक्षाओं के बजाय ज़रूरतों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

एक अन्य प्रतिक्रिया में इसे 'आगामी संकट' बताया गया और लोगों को सलाह दी गई कि वे बुनियादी बातों पर लौटें। कुछ सुझाव दिए गए हैं:

  • कम खर्च करना
  • अधिक बचत करना
  • स्वास्थ्य और परिवार को प्राथमिकता देना

इस तरह की चर्चाएँ समाज में एक नई चेतना फैलाने का कार्य कर रही हैं, जिससे लोग अपने वित्तीय प्रबंधन के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं।

भविष्य की संभावनाएँ

आर्थिक अस्थिरता के बीच, लोगों को अपनी वित्तीय स्थिति को संभालने की आवश्यकता है। यह समय है कि लोग सोच-समझकर निर्णय लें और अपने भविष्य के लिए सही कदम उठाएँ।

सिद्धार्थ मुकुंद जैसे विचारशील संस्थापकों की चेतावनी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने वित्तीय लक्ष्यों को पाने के लिए सही रास्ते पर हैं या नहीं।

आर्थिक स्थिति की जटिलताओं को समझना और उस पर सही तरीके से प्रतिक्रिया देना अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।

इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए, आप इस वीडियो को देख सकते हैं, जो भारतीय शहरों में स्टार्टअप की बढ़ती संख्या और इसके प्रभावों पर चर्चा करता है:

इस प्रकार, आज की परिस्थिति हमें यह सिखाती है कि हमें अपने जीवन को संतुलित रखने और भविष्य के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।

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