मैसूर दशहरा पर राजनीति और बीजेपी की प्रतिक्रिया

सूची
  1. बानू मुश्ताक का आमंत्रण और राजनीतिक विवाद
  2. मैसूर दशहरा: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा
  3. बीजेपी और उनके आपत्ति के कारण
  4. कांग्रेस का बचाव और संस्कृति का महत्व
  5. दशहरा महोत्सव का धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप
  6. दशहरा का उद्घाटन: एक नया दृष्टिकोण

मैसूर का दशहरा महोत्सव, अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस वर्ष, इस महोत्सव ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचाई है, जब कर्नाटक की सरकार ने बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका बानू मुश्ताक को इस कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया। यह सिर्फ एक आमंत्रण नहीं है, बल्कि इसे लेकर विभिन्न राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। क्या यह आमंत्रण संस्कृति और धर्म के बीच की सीमा को मापता है? आइए इस जटिल मुद्दे पर एक गहरी नज़र डालते हैं।

बानू मुश्ताक का आमंत्रण और राजनीतिक विवाद

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 22 सितंबर 2025 को बानू मुश्ताक के दशहरा महोत्सव का उद्घाटन करने की घोषणा की है। इस निर्णय ने राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी के नेताओं को आक्रोशित कर दिया है। केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने इस आमंत्रण को तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा बताते हुए कहा कि यह हिंदू धर्म और उसकी परंपराओं का अपमान है।

  • शोभा करंदलाजे का तर्क है कि देवी चामुंडेश्वरी की पूजा एक धार्मिक अनुष्ठान है।
  • उन्होंने सवाल किया कि क्या बानू मुश्ताक देवी में विश्वास करती हैं, और इस संदर्भ में उनकी धार्मिक आस्था को चुनौती दी।
  • बीजेपी ने यह भी कहा कि यह परंपरा हमेशा से भक्ति भाव से जुड़ी रही है और इसे किसी के राजनीतिक लाभ के लिए नहीं भुनाना चाहिए।

इस विवाद ने कर्नाटक की राजनीति में एक नई बहस का आगाज़ किया है, जो धर्म और संस्कृति के अंतर्संबंधों पर केंद्रित है। क्या एक साहित्यिक व्यक्ति को धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा बनने का अधिकार है, भले ही उनकी आस्था भिन्न हो?

मैसूर दशहरा: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा

मैसूर का दशहरा महोत्सव, जिसे जंबू सवारी भी कहा जाता है, हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। यह त्योहार देवी चामुंडेश्वरी की पूजा के साथ शुरू होता है, जिसमें विशेष रूप से प्रशिक्षित 12 हाथियों के साथ देवी की मूर्ति को मैसूर महल से बन्नीमंतप तक ले जाया जाता है। इस जुलूस में नृत्य, संगीत, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं, जो इसे एक भव्य धार्मिक उत्सव बनाते हैं।

इस महोत्सव का महत्व केवल धार्मिक नहीं है; यह कर्नाटक की संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। दशहरा महोत्सव के दौरान होने वाले अनुष्ठान और कार्यक्रमों का आयोजन ऐतिहासिक रूप से राजाओं द्वारा किया जाता रहा है।

बीजेपी और उनके आपत्ति के कारण

बीजेपी नेताओं ने बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने पर गंभीर सवाल उठाए हैं। पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा ने कहा कि यह परंपरा हमेशा से देवी चामुंडी की भक्ति से संबंधित रही है। उन्होंने कहा:

  • “क्या बानू मुश्ताक देवी चामुंडेश्वरी में विश्वास करती हैं?”
  • “क्या उन्होंने कभी हमारे रीति-रिवाजों का पालन किया है?”
  • “क्या उनका आमंत्रण धार्मिक अनुष्ठान से संबंधित है?”

इन सवालों से स्पष्ट होता है कि बीजेपी का पक्ष केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है।

कांग्रेस का बचाव और संस्कृति का महत्व

कांग्रेस ने इस आमंत्रण का समर्थन करते हुए इसे कर्नाटक की संस्कृति से जोड़ा है। गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा कि दशहरा को सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए। उनका कहना है:

  • “यह एक राजकीय उत्सव है, जिसमें सभी को आमंत्रित किया जाना चाहिए।”
  • “भूतकाल में भी अन्य मुस्लिम व्यक्तियों ने इस महोत्सव का उद्घाटन किया है।”
  • “हम सभी समुदायों को इसमें शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।”

इस प्रकार, कांग्रेस ने यह स्पष्ट किया है कि दशहरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें विभिन्न समुदायों का योगदान महत्वपूर्ण है।

दशहरा महोत्सव का धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप

दशहरा महोत्सव का धार्मिक महत्व केवल देवी चामुंडेश्वरी की पूजा से नहीं बल्कि इसके साथ जुड़े सांस्कृतिक अनुष्ठानों से भी है। यह पर्व न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह कर्नाटक के लोगों की एकता और विविधता का प्रतीक भी है। इस महोत्सव के दौरान होने वाले विभिन्न अनुष्ठान और परंपराएं:

  • शास्त्रीय नृत्य और संगीत कार्यक्रम
  • स्थानीय कला और शिल्प का प्रदर्शन
  • समुदायों के बीच आपसी सहयोग और सद्भावना

इस प्रकार, दशहरा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह कर्नाटक की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है।

दशहरा का उद्घाटन: एक नया दृष्टिकोण

बानू मुश्ताक का आमंत्रण इस बात का प्रतीक है कि कर्नाटक की संस्कृति विविधता को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। यह एक संकेत है कि विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के लोग एक साथ आ सकते हैं।

कर्नाटक सरकार का यह निर्णय न केवल एक साहित्यिक उपलब्धि को मान्यता देता है, बल्कि यह समाज में समरसता और समावेशिता को भी बढ़ावा देता है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में इस तरह के कार्यक्रमों में और क्या बदलाव आते हैं।

मैसूर का दशहरा महोत्सव, जो कि हमेशा से भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक रहा है, अब इस नए दृष्टिकोण के साथ एक नई दिशा में बढ़ रहा है। क्या यह बदलाव समाज में स्थायी रूप से अपनाया जाएगा? यह एक सवाल है जिसका उत्तर केवल समय ही दे सकता है।

बानू मुश्ताक का आमंत्रण और उससे जुड़ा विवाद निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है और इसे ध्यान से देखने की आवश्यकता है।

यहां एक वीडियो है जिसमें बानू मुश्ताक के बारे में और जानकारी दी गई है:

इस प्रकार, बानू मुश्ताक का आमंत्रण केवल एक व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि कर्नाटक की संस्कृति और राजनीति के बीच की जटिलताओं को उजागर करने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

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