भारतीय सिनेमा में मातृत्व का अद्वितीय चित्रण सदैव दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता आया है। यह सिर्फ एक रिश्ते का प्रतिनिधित्व नहीं करता, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा और मानवीय संवेदनाओं का गहरा ताना-बाना बुनता है। माताओं के किरदारों ने न केवल फिल्मों की कहानी को मजबूती दी है, बल्कि उन्होंने समाज में मातृत्व की अहमियत को भी उजागर किया है। हाल ही में एक विशेष कार्यक्रम 'मेरे पास मां है' ने इस पहलू को और भी गहरा किया, जिससे न केवल पुरानी यादें ताज़ा हुईं बल्कि माताओं के किरदारों की यात्रा पर भी प्रकाश डाला गया।
सिनेमा में मातृत्व की गहराई
हिंदी सिनेमा में मातृत्व केवल एक किरदार नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण और सशक्त प्रतीक है। माता का किरदार अक्सर नायकों के साहस और संघर्ष का आधार बनता है। प्रेमचंद की 'ईदगाह' में जिस मौन प्रेम का उल्लेख है, वही प्रेम सिनेमा में माताओं के किरदारों के माध्यम से प्रकट होता है। यह किरदार सदियों से दर्शकों के दिलों में बसा है और उनकी भावनाओं को छूता है।
इस भूमिका को निभाने वाली अभिनेत्रियों की कहानी भी उतनी ही रोचक है। श्वेत-श्याम फिल्मों से लेकर रंगीन युग तक, माताओं का किरदार हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। कई मुख्यधारा की अभिनेत्रियों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। आज, हम श्रीदेवी, काजोल, और विद्या बालन जैसे कलाकारों के माध्यम से मातृत्व के विभिन्न आयामों को देखते हैं।
‘मेरे पास मां है’ का अनोखा कार्यक्रम
इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित 'मेरे पास मां है' कार्यक्रम ने माताओं के किरदारों को मान्यता देने का एक बेहतरीन मंच प्रदान किया। इस कार्यक्रम में कई प्रसिद्ध कलाकारों ने भाग लिया और हिंदी सिनेमा की माताओं की कहानियों को जीवंत किया। यह आयोजन वरिष्ठ नागरिक दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया था, जो मातृत्व की महत्ता को उजागर करने के लिए एक सही समय था।
कला और कहानी का अनूठा संगम
कार्यक्रम में वरिष्ठ अभिनेत्री सोहेला कपूर और नाट्यकार अनुराधा कपूर ने माताओं के किरदारों की यात्रा को साझा किया। उन्होंने उन अद्भुत अभिनेत्रियों का जिक्र किया, जिन्होंने न केवल मातृत्व की छवि को सशक्त किया, बल्कि दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। अचला सचदेव, दुर्गा खोटे, और ललिता पवार जैसी अभिनेत्रियाँ इस कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण बनीं।
दुर्गा खोटे का करियर केवल मातृत्व तक सीमित नहीं रहा। वे एक समय में मुख्य नायिका के रूप में भी जानी जाती थीं। फिल्म 'सीता' में उनकी मुख्य भूमिका ने उन्हें पहचान दिलाई। इसी तरह, अचला सचदेव ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उनके द्वारा गाए गए गीत 'ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं' ने दर्शकों को भावुक कर दिया।
मातृत्व के विविध रंग
माता का किरदार हिंदी सिनेमा में केवल एक तरह से नहीं दिखाया गया। विभिन्न भूमिकाओं में माताएँ नायिकाओं, मार्गदर्शकों, और कभी-कभी खलनायकों के रूप में भी सामने आई हैं। ललिता पवार की 'मंथरा' की भूमिका ने एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनका किरदार दर्शकों के मन में गहराई से बसा है।
- ललिता पवार का जन्म नाम अंबा लक्ष्मण राव था।
- उन्होंने फिल्म उद्योग में अपने करियर के दौरान 700 से अधिक फिल्में कीं।
- उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया।
इसके अलावा, कमलेश गिल का किरदार भी आज के सिनेमा में महत्वपूर्ण है। उनका अभिनय हमारे घरों की बुजुर्गियत का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है। उनकी भूमिका में दर्शकों को अपनी दादी या नानी की छवि साफ-साफ नजर आती है। हालाँकि, स्वास्थ्य कारणों से वे इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाईं, लेकिन उनके परिवार ने उनकी यात्रा को साझा किया।
संगीत और मातृत्व का जादू
कार्यक्रम में मातृत्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने के लिए कई गीतों का प्रदर्शन भी किया गया। निरुपा रॉय और राखी की फिल्म 'राजा और रंक' का भावुक गीत 'तू कितनी अच्छी है...' आज भी लोगों की जुबान पर है। दर्शक इस गीत को गाते हुए भावुक हो गए।
इस कार्यक्रम में दर्शकों ने 'दीवार' फिल्म के प्रसिद्ध डॉयलाग 'मेरे पास मां है' को भी याद किया। यह डॉयलाग मातृत्व की शक्ति और उसके महत्व को दर्शाता है, जिसे सभी ने अपने-अपने अंदाज में दोहराया।
समाज में मातृत्व का महत्व
मातृत्व केवल एक किरदार नहीं है, यह समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। माताओं ने हमेशा अपने बच्चों के लिए बलिदान दिया है और उन्हें प्रेरित किया है। इस कार्यक्रम ने दर्शकों को यह याद दिलाया कि मातृत्व केवल फिल्मी दुनिया में ही नहीं, बल्कि हमारे असली जीवन में भी कितना महत्वपूर्ण है।
कात्यायनी और थ्री आर्ट्स क्लब के इस संयुक्त प्रयास ने सिनेमा में मातृत्व की छवि को और भी ऊंचाई दी है। इस प्रकार के आयोजन हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि कैसे माताएँ हमारे जीवन में एक स्थायी प्रभाव छोड़ती हैं। मातृत्व का यह जश्न निश्चित रूप से हर दिल में एक विशेष स्थान रखता है।
कार्यक्रम के दौरान दर्शकों को एक विशेष वीडियो भी देखने का अवसर मिला, जिसमें मातृत्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया।
इस तरह, 'मेरे पास मां है' कार्यक्रम ने मातृत्व के जादू को फिर से जिंदा किया और यह साबित किया कि माताएं हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।