मसूरी वन प्रभाग से 7375 बाउंड्री पिलर गायब जांच की सिफारिश

सूची
  1. गायब हुए बाउंड्री पिलर का मामला
  2. अतिक्रमण की गंभीरता
  3. DFO अमित कंवर की स्थिति
  4. भ्रष्टाचार के आरोप
  5. पिछले विवाद और वन विभाग की छवि
  6. आगे की कार्रवाई और जनता की उम्मीदें

उत्तराखंड के मसूरी वन प्रभाग में 7,375 बाउंड्री पिलर के गायब होने का मामला एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। यह घटना न केवल वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के आरोपों को भी उजागर करती है। आइए, इस मामले की गहराई में उतरते हैं और इसे समझने की कोशिश करते हैं कि यह घटना कितनी बड़ी है और इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं।

गायब हुए बाउंड्री पिलर का मामला

यह मामला तब सामने आया जब हल्द्वानी स्थित मुख्य वन संरक्षक (कार्ययोजना) आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने वन मुखिया समीर सिन्हा को एक पत्र लिखकर इस गंभीर मामले की एसआईटी जांच की सिफारिश की। पत्र में स्पष्ट किया गया है कि रायपुर रेंज क्षेत्र में लंबे समय से वन भूमि पर अतिक्रमण हो रहा है। यह सब स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से संभव हुआ है, जिससे विभाग की ईमानदारी पर सवाल उठता है।

चतुर्वेदी ने 20 अगस्त 2025 को लिखे पत्र में उल्लेख किया है कि इस मामले की जांच का आदेश दो महीने पहले दिया गया था, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनका मानना है कि ऐसी स्थिति में यह प्रतीत होता है कि दोषियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

अतिक्रमण की गंभीरता

वन विभाग ने इस प्रकरण में विभागीय मिलीभगत की आशंका जताई है। चतुर्वेदी के पत्र में यह भी कहा गया है कि इतने बड़े स्तर पर अतिक्रमण संभव नहीं है यदि अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता न हो। इसके चलते, यह सवाल उठता है कि ऐसे मामलों में कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही।

  • 2017-18 में 233 अतिक्रमण मामले दर्ज हुए थे।
  • वहीं, 2023-24 में यह संख्या घटकर 142 रह गई।
  • इस अवधि में लगभग 60 हेक्टेयर भूमि को अतिक्रमण से मुक्त किया गया।

हालांकि, अभी भी 142 मामले और दर्जनों हेक्टेयर भूमि अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। यह दर्शाता है कि वन विभाग के प्रयासों में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है।

DFO अमित कंवर की स्थिति

मसूरी के DFO अमित कंवर के खिलाफ पत्र में आरोप लगाया गया है कि उनकी संपत्तियों की जांच CBI या ED से कराई जा सकती है। आरोप है कि कंवर के पास हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आधा दर्जन से अधिक संपत्तियां हैं।

कंवर ने आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि उन्होंने पहले ही अपनी संपत्तियों का विवरण सरकार के पोर्टल पर उपलब्ध करा दिया है। उनका कहना है कि जिन संपत्तियों का उल्लेख किया गया है, वे उनकी व्यक्तिगत बचत और लोन के माध्यम से खरीदी गई हैं।

भ्रष्टाचार के आरोप

वन विभाग ने पत्र में यह भी सवाल उठाया है कि जिन अफसरों पर भ्रष्टाचार और अवैध संपत्तियों के आरोप हैं, उन्हें लगातार Integrity Certificate और Outstanding Grading क्यों दी जाती रही? यह स्थिति भ्रष्टाचार के खिलाफ घोषित Zero Tolerance नीति को बेकार साबित करती है।

इस प्रकार के मामलों में कार्रवाई न होने से स्थानीय आबादी में भी असंतोष बढ़ता जा रहा है। लोगों का मानना है कि यदि समय रहते कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो वन विभाग की विश्वसनीयता और उसकी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठेंगे।

पिछले विवाद और वन विभाग की छवि

यह पहला मामला नहीं है जब वन विभाग विवादों में आया हो। इससे पहले पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में बने इको हट्स घोटाले का खुलासा हुआ था। इस मामले में चतुर्वेदी ने तत्कालीन DFO विनय भार्गव पर एफआईआर करने के लिए कहा था। राज्य सरकार द्वारा मामले को टालते देख केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि आरोपी पर शीघ्र कार्रवाई करें।

मसूरी और देहरादून वन प्रभागों को मियावाकी फारेस्ट प्रोजेक्ट में अत्यधिक कीमत का प्रपोजल देना भी भारी पड़ा था। आजतक के खुलासे के बाद वन मुखिया समीर सिन्हा ने मामले में जांच के आदेश दिए थे, जिसके बाद प्रपोजल रद्द कर दिए गए।

वन विभाग के विवादों में इस बात का भी उल्लेख किया गया था कि जंगलों को पुनः सींचने के लिए जारी हुए फंड में से काफी पैसा लैपटॉप और मोबाइल फोन में लगाने की बात सामने आई थी। आजतक की खबर के बाद इस मामले की भी जांच के आदेश दिए गए थे।

आगे की कार्रवाई और जनता की उम्मीदें

DFO अमित कंवर ने बताया है कि इस मामले में तेजी से जांच की जा रही है और लगभग एक हफ्ते में पूरी रिपोर्ट तैयार कर अधिकारियों को भेज दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि जल्द ही इस प्रकरण में एफआईआर दर्ज कराई जाएगी।

स्थानीय लोग इस मामले में निष्पक्ष जांच और ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रहे हैं। लोगों का मानना है कि यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाते हैं, तो यह न केवल वन विभाग की छवि को सुधारने में मदद करेगा, बल्कि स्थानीय समुदाय में भी विश्वास पैदा करेगा।

और अंत में, यह मामला उत्तराखंड के वन विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जहां पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता है। यह समय है कि संबंधित अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को समझें और जनता के विश्वास को बहाल करने के लिए कदम उठाएं।

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