भारत के कृषि क्षेत्र में मखाना एक विशेष फसल है, जो बिहार के किसानों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। हाल के दिनों में, इस फसल ने राजनीतिक विमर्श का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी बन गया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मखाना किसानों के मुद्दे को उठाते हुए बिचौलियों की भूमिका पर सवाल उठाया है। आइए, जानते हैं इस विषय में और गहराई से।
राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा और मखाना किसानों की स्थिति
कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार के कटिहार जिले में मखाना किसानों के बीच वोट अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं। इस यात्रा के दौरान उन्होंने किसानों के साथ संवाद किया और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास किया। गांधी ने यह महसूस किया कि मखाना किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है, और इसके पीछे का मुख्य कारण बिचौलिया है।
राहुल ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा कि बिहार विश्व में मखाना का 90% उत्पादन करता है, लेकिन मेहनत करने वाले किसान केवल 1% लाभ प्राप्त करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मखाना बड़े शहरों में 1000-2000 रुपये प्रति किलो बिकता है, जबकि किसानों को केवल नाममात्र मूल्य मिलता है।
बिचौलियों की भूमिका और किसानों की समस्याएं
बिचौलियों का प्रभाव मखाना किसानों की दुर्दशा का एक प्रमुख कारण है। वे किसानों से मखाना को बेहद कम कीमत पर खरीदते हैं, जबकि बाजार में इसकी कीमत कहीं अधिक होती है। ऐसे में सवाल उठता है कि किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य क्यों नहीं मिल पा रहा है।
- किसानों को मखाना की बिक्री पर काफी कम लाभ मिलता है।
- बिचौलियों की वजह से किसानों को अपनी मेहनत का सही प्रतिफल नहीं मिलता।
- बिचौलियों के माध्यम से होने वाले लाभ का बड़ा हिस्सा उनकी जेब में जाता है।
राहुल गांधी ने बिहार की एनडीए सरकार और केंद्र की बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया है कि ये सरकारें किसानों के अधिकारों का हनन कर रही हैं। उन्होंने वादा किया कि यदि इंडिया गठबंधन की सरकार बनती है, तो मखाना किसानों को सीधे बाजार में पहुंचाया जाएगा, जिससे बिचौलियों की आवश्यकता खत्म हो जाएगी।
किसान बिल का विरोध और उसका प्रभाव
राहुल गांधी का मखाना किसानों के लिए बिचौलियों के खिलाफ बोलना और 2020 के किसान बिलों का विरोध करना एक विरोधाभास के रूप में देखा जा सकता है। किसान बिलों का एक मुख्य उद्देश्य APMC मंडियों के बाहर व्यापार को बढ़ावा देना था, जिससे किसानों को अपनी उपज बेचने में सुविधा हो।
सरकार ने तर्क दिया था कि इससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी। लेकिन राहुल गांधी का तर्क था कि इससे छोटे किसानों को नुकसान होगा, क्योंकि वे मंडियों पर निर्भर हैं।
उदाहरण के लिए, मखाना किसानों की शिकायत है कि बिचौलिए उनकी उपज को 400-750 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर खरीदते हैं, जबकि बाजार में इसकी कीमत 900-1600 रुपये प्रति क्विंटल होती है। यदि किसान बिल लागू होते, तो मखाना किसान सीधे खरीदारों से बेहतर कीमत प्राप्त कर सकते थे।
मखाना किसानों की अन्य समस्याएं
बिचौलियों के अलावा, मखाना किसानों को अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मखाना की खेती एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है, जिसमें पानी में डूबकर बीज निकालने से लेकर सुखाने, भूनने और पैकेजिंग तक कई चरण शामिल हैं।
- किसान आज भी सदियों पुरानी तकनीक का उपयोग कर रहे हैं।
- आधुनिक मशीनरी और तकनीकी सहायता की आवश्यकता है।
- किसानों के लिए उचित ऋण और बीमा की व्यवस्था करना बहुत जरूरी है।
सरकार ने मखाना बोर्ड का गठन किया है, लेकिन जब तक सरकारी खरीद शुरू नहीं होगी, तब तक किसानों की समस्याएं बनी रहेंगी। मखाना बोर्ड से किसानों को उम्मीदें हैं, लेकिन उसके प्रभाव का पता आने वाले वर्षों में ही चलेगा।
मखाना उत्पादन और किसानों की सामाजिक स्थिति
मखाना उत्पादन मुख्य रूप से बिहार के मिथिलांचल और सीमांचल क्षेत्रों में होता है, जहां यह फसल 36,727 हेक्टेयर में उगाई जाती है। यह फसल मल्लाह और अति पिछड़े समुदायों द्वारा उगाई जाती है, जो बिहार की सामाजिक-आर्थिक संरचना में महत्वपूर्ण हैं।
किसानों का मुद्दा अब राजनीतिक विमर्श का एक हिस्सा बन गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक दल अब किसानों की समस्याओं को गंभीरता से ले रहे हैं। मखाना किसानों की स्थिति को लेकर राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।
एनडीए की मखाना रणनीति
मखाना का उत्पादन बिहार के सामाजिक-आर्थिक ढांचे में महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फसल को वैश्विक स्तर पर प्रचारित किया है, जैसे कि उन्होंने मॉरीशस के राष्ट्रपति को मखाना भेंट किया। बिहार सरकार ने किसानों को 75% सब्सिडी देने का वादा किया है।
हालांकि, मखाना बोर्ड की स्थापना में हो रही देरी से अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं दिखा है। पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने मखाना बोर्ड की स्थापना की मांग की है, जिससे यह मुद्दा और भी महत्वपूर्ण बन गया है।
राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति
राहुल गांधी ने मखाना किसानों के मुद्दे को उठाना अपनी राजनीतिक रणनीति के तहत किया है। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन बीजेपी की योजनाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी ने मखाना किसानों की समस्याओं को अपने वोट अधिकार यात्रा के दौरान उठाया है।
कांग्रेस की यह रणनीति मुस्लिम और पिछड़े समुदायों के वोटों को आकर्षित करने के लिए है। सीमांचल में मुस्लिम आबादी की संख्या अधिक है, और यह क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
मल्लाह समुदाय का राजनीतिक प्रभाव
मखाना उत्पादन करने वाला मल्लाह समुदाय अति पिछड़ा समुदाय में आता है और इसका राजनीतिक प्रभाव बहुत अधिक है। यह समुदाय राजनीतिक रूप से जागरूक है और अन्य पिछड़ी जातियों को एकत्रित करने में सक्षम है। राहुल गांधी ने जब मखाना के खेतों में मछली पकड़ने वाले किसानों के बीच में जाकर उनकी समस्याओं को समझा, तो यह साफ था कि वह इस समुदाय को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस समुदाय के नेता मुकेश सहनी ने महागठबंधन के लिए 60 सीटों की मांग की है और खुद को डिप्टी सीएम उम्मीदवार के रूप में पेश किया है। ऐसी अटकलें हैं कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वह फिर से राजनीतिक दांवपेच कर सकते हैं।
मखाना किसानों के मुद्दे पर राजनीतिक दलों की सक्रियता यह दर्शाती है कि आने वाले समय में इस समुदाय की स्थिति में सुधार के लिए कदम उठाए जाएंगे। यह समय है, जब मखाना किसानों की आवाज़ को सुना जाना चाहिए, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके।