दुर्गा पूजा, पश्चिम बंगाल की सबसे महत्वपूर्ण और भव्य त्योहारों में से एक है। इस त्योहार की तैयारी हर साल विशेष उत्साह के साथ की जाती है, लेकिन इस बार कुछ खास चुनौतियाँ सामने आई हैं। थर्मोकोल और अन्य प्लास्टिक सामग्री पर प्रतिबंध ने मूर्तिकारों के लिए गंभीर आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। इस लेख में हम इस स्थिति के कारणों, प्रभावों और संभावित समाधानों पर चर्चा करेंगे।
थर्मोकोल का उपयोग और इसके प्रभाव
थर्मोकोल, जिसे आमतौर पर एक सस्ती सजावट सामग्री के रूप में जाना जाता है, दुर्गा पूजा के दौरान मूर्तियों को सजाने में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसकी लागत कम होने के कारण, यह कई कारीगरों के लिए पहली पसंद बन गया है। लेकिन इसके पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों के कारण, पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (WBPCB) ने इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है।
इस प्रतिबंध का उद्देश्य केवल मूर्तियों की सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य आयोजनों जैसे शादी की सजावट में भी लागू है। WBPCB ने 28 अक्टूबर 2022 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें थर्मोकोल के उपयोग को हानिकारक माना गया था। इसके बावजूद, यह सामग्री कारीगरों के लिए किफायती विकल्प बनी हुई है।
मूर्तिकारों की चिंताएँ
कुम्हारटोली के मूर्तिकारों के लिए यह प्रतिबंध एक नई चुनौती लेकर आया है। कार्तिक पाल, कुम्हार संघ के सचिव, ने कहा कि “थर्मोकोल सबसे किफायती सामग्री है, और यदि इसके स्थान पर कार्डबोर्ड या धातु जैसी महंगी सामग्रियों का उपयोग किया गया तो लागत में कई गुना वृद्धि होगी।”
- थर्मोकोल का उपयोग केवल सजावट में नहीं, बल्कि बैकग्राउंड और गहनों में भी होता है।
- यदि कारीगरों को थर्मोकोल का उपयोग बंद करना पड़ा, तो मूर्तियों की लागत बढ़ जाएगी।
- कई मूर्तिकार ऐसे हैं जो इस साल मूर्तियों के अंतिम चरण में हैं और सामग्री बदलना उनके लिए व्यावहारिक नहीं है।
इंद्रजीत पाल, एक अन्य मूर्तिकार, ने बताया कि “अगर पूर्ण प्रतिबंध लागू हुआ तो हमें पारंपरिक सामग्रियों का सहारा लेना पड़ेगा, जो पहले से ही महंगी हैं।” इस स्थिति ने मूर्तिकार समुदाय में चिंता बढ़ा दी है, जो पहले से ही आर्थिक दबावों का सामना कर रहे हैं।
जागरूकता अभियान का महत्व
WBPCB ने स्पष्ट किया है कि थर्मोकोल का उपयोग पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है। इसके खिलाफ कार्रवाई मुख्य रूप से जागरूकता बढ़ाने का एक प्रयास है, न कि केवल ज़ब्ती अभियान। अधिकारियों ने कारीगरों को आश्वासन दिया है कि अगर कोई गंभीर उल्लंघन नहीं होता, तो वे सहनशीलता दिखाएंगे।
इस जागरूकता अभियान का लक्ष्य न केवल मूर्तियों के निर्माण में बल्कि समग्र रूप से पर्यावरण संरक्षण में योगदान देना है। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि जागरूकता क्यों आवश्यक है:
- थर्मोकोल के पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी फैलाना।
- वैकल्पिक सामग्रियों के उपयोग के लाभों को समझाना।
- स्थायी विकास के सिद्धांतों को प्रमोट करना।
स्थायी समाधान की आवश्यकता
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस प्रतिबंध को स्थायी रूप से लागू किया जाना चाहिए। हालाँकि, उन्हें यह भी चिंता है कि जागरूकता अभियान काफी देर से शुरू हुआ है। दुर्गा पूजा के लिए मूर्तियों का निर्माण अंतिम चरण में है, और इस समय सामग्री को बदलने का दबाव मूर्तिकारों के लिए अव्यवहारिक और आर्थिक रूप से बोझिल है।
अधिकांश कारीगर अब पारंपरिक सामग्रियों पर वापस लौटने के लिए मजबूर होंगे, जो कि आर्थिक दृष्टि से उनके लिए चुनौतीपूर्ण है। इस स्थिति को सुधारने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- स्थायी और किफायती सामग्रियों का विकास।
- सरकार और संगठनों द्वारा समर्थन और सब्सिडी प्रदान करना।
- समुदायों में जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यशालाएँ आयोजित करना।
सामुदायिक सहयोग का महत्व
सामुदायिक सहयोग इस स्थिति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। कारीगरों के बीच एकजुटता और सहयोग से इस समस्या का समाधान निकालने में मदद मिल सकती है। मूर्तिकारों को एक मंच पर लाना और उन्हें एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने का अवसर देना आवश्यक है।
इस समस्या का समाधान केवल कारीगरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समुदाय की जिम्मेदारी है कि वे पर्यावरण के प्रति जागरूक रहें और सतत विकास के लिए प्रयासरत रहें।
इस संदर्भ में, एक वीडियो जो इस मुद्दे को उजागर करता है, देखने लायक है। यह वीडियो मूर्तिकारों की स्थिति और थर्मोकोल के उपयोग पर प्रतिबंध के प्रभावों को दर्शाता है:
अंततः, यह स्पष्ट है कि थर्मोकोल पर प्रतिबंध केवल एक कदम है, लेकिन इसके साथ-साथ मूर्तिकारों के लिए ठोस समाधान और समर्थन की आवश्यकता है। इस दिशा में उठाए गए कदम ही हमें एक पर्यावरण के अनुकूल और स्थायी भविष्य की ओर ले जा सकते हैं।



