प्रस्तुत समय में, भारतीय छात्र सिर्फ पढ़ाई के दबाव से ही नहीं, बल्कि अपने परिवार की उम्मीदों, आर्थिक चिंताओं और सामाजिक तुलना के बोझ तले दबे हुए हैं। इस मानसिक बोझ ने न केवल उनकी शैक्षणिक जिंदगी को प्रभावित किया है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाला है। तनाव, चिंता और अवसाद जैसे मुद्दे अब छात्रों के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। यह एक गंभीर समस्या है, जिसे समझने और सुधारने की आवश्यकता है।
छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे
हर साल लाखों छात्र परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ विभिन्न मानसिक दबावों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि यह दबाव कैसे बनता है और इसके क्या प्रभाव होते हैं। अधिकांश छात्र यह मानते हैं कि अंक और रैंक उनकी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह स्थिति उन्हें निरंतर चिंता और असफलता के डर में डाल देती है।
बोर्ड परीक्षाओं, प्रतियोगी परीक्षाओं और कॉलेजों में प्रवेश के लिए प्रतिस्पर्धा के कारण छात्रों पर अनेक प्रकार के मानसिक दबाव बनते हैं। कई छात्र इस स्थिति में खुद को एक अंतहीन दौड़ में महसूस करते हैं। इस दौड़ में उनका मानसिक स्वास्थ्य अक्सर उपेक्षित हो जाता है।
IC3 रिपोर्ट: छात्रों के तनाव के कारण
IC3 स्टूडेंट सुसाइड रिपोर्ट 2025 ने यह स्पष्ट किया है कि छात्रों में तनाव के प्रमुख कारणों में शैक्षणिक दबाव, माता-पिता की अपेक्षाएं, आर्थिक चिंताएं और साथियों से प्रतिस्पर्धा शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आधे से अधिक छात्रों ने परीक्षा की चिंता को अपने तनाव का सबसे बड़ा कारण माना है।
- शैक्षणिक दबाव
- माता-पिता की अपेक्षाएं
- आर्थिक चिंताएं
- सामाजिक प्रतिस्पर्धा
ये चारों तत्व मिलकर एक ऐसी परिस्तिथि उत्पन्न करते हैं जिसमें छात्र स्वयं को मानसिक रूप से थका हुआ और तनावग्रस्त महसूस करते हैं। इस स्थिति में, वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असमर्थ हो जाते हैं, जिससे उनकी आत्मविश्वास में कमी आती है।
असफलता का डर और उसके प्रभाव
छात्रों के लिए परीक्षा का परिणाम कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे कि यह एक अदालत का फैसला हो। वे अक्सर सोचते हैं कि यदि वे टॉप नहीं कर पाते हैं, तो अपने परिवार को निराश करते हैं। यह मानसिकता असफलता का डर पैदा करती है, जो उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बनाती है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रकार के दबाव से बच्चों में 'परफेक्शनिज़्म' की बीमारी बढ़ जाती है।
छात्र खुद को निरंतर तुलना करते हैं, जिससे उनका आत्मसम्मान कम होता है। इस स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है कि बच्चों को यह समझाया जाए कि असफलता भी सीखने का एक हिस्सा है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: यूरोपीय छात्रों की चिंताएं
यूरोप जैसे देशों में, छात्रों को शिक्षा की लागत को लेकर चिंताओं का सामना नहीं करना पड़ता है, जबकि भारत में महंगी कोचिंग और स्कूलों का बोझ परिवारों पर पड़ता है। इस अंतर से यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक स्थिति भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- यूरोप में शिक्षा लगभग मुफ़्त है, जिससे छात्रों का तनाव कम होता है।
- सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में भी शैक्षणिक तनाव मौजूद है, लेकिन वहां स्कूल-आधारित काउंसलिंग सिस्टम अधिक मजबूत हैं।
- यूरोपीय छात्र नौकरी की संभावनाओं को लेकर अधिक चिंतित रहते हैं।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि शैक्षणिक तनाव का स्तर भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग होता है, और यह आर्थिक स्थिति और उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर करता है।
सामाजिक तुलना का प्रभाव
छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ने का एक बड़ा कारण सोशल मीडिया है, जहां सभी अपने 'परफेक्ट लाइफ' को प्रदर्शित करते हैं। यह स्थिति छात्रों को अपने जीवन में असफलता की भावना से भर देती है।
अमेरिका में भी छात्र इसी प्रकार के तनाव का सामना करते हैं, जहां उन्हें पढ़ाई, दोस्तों के रिश्ते और भविष्य की चिंताएं घेरती हैं। इस सामाजिक दबाव के चलते कई छात्र अवसाद में चले जाते हैं।
विशेषज्ञों की राय
मनोवैज्ञानिक डॉ. अंजलि मेहरा का कहना है कि आज के बच्चे सिर्फ किताबें नहीं पढ़ रहे हैं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था का बोझ भी उठा रहे हैं जहां अंकों को मानसिक स्वास्थ्य से ज्यादा महत्व दिया जाता है।
वे सुझाव देती हैं कि स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य की पढ़ाई होनी चाहिए और शिक्षकों को बच्चों के तनाव के लक्षण पहचानने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। इसके साथ ही, माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की मेहनत की भी सराहना करें और सिर्फ नतीजों पर ध्यान न दें।
बदलाव की आवश्यकता
इस स्थिति में सुधार के लिए जरूरी है कि स्कूल, माता-पिता और सरकार मिलकर प्रयास करें। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जो कागज़ पर तो होशियार दिखेगी, लेकिन मानसिक रूप से टूट चुकी होगी।
यह आवश्यक है कि हम बच्चों को यह सिखाएं कि जीवन में असफलताएं और चुनौतियां भी आती हैं, और उन पर काबू पाने का तरीका क्या होना चाहिए।
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए जरूरी है कि हम सब मिलकर एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करें। यह न केवल उनके व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज की समृद्धि के लिए भी अनिवार्य है।