दिल्ली में साइबर ठगों का पर्दाफाश, क्रिप्टो निवेश में ठगी

सूची
  1. साइबर ठगों के गिरोह का पर्दाफाश
  2. पुलिस की जांच और गिरफ्तारी
  3. साइबर ठगों की कार्यप्रणाली
  4. गिरोह के सदस्य और उनकी भूमिका
  5. पुलिस की कार्रवाई और आगे की योजनाएँ
  6. साइबर ठगी से कैसे बचें?

दिल्ली में साइबर ठगों का एक बड़ा गिरोह सामने आया है, जिसने एक कारोबारी को फर्जी क्रिप्टोकरेंसी निवेश के नाम पर लाखों रुपए की ठगी की। इस घटना ने न केवल पीड़ित को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाया, बल्कि समाज में बढ़ते साइबर अपराधों की गंभीरता को भी उजागर किया है। आइए इस मामले की गहराई में जाकर समझते हैं कि ये ठग कैसे काम करते हैं और इससे बचने के उपाय क्या हैं।

साइबर ठगों के गिरोह का पर्दाफाश

दिल्ली पुलिस ने हाल ही में एक बड़े साइबर ठगी गिरोह का भंडाफोड़ किया है, जिसने एक कारोबारी से लाखों रुपए की ठगी की। इस गिरोह के मास्टरमाइंड समेत तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस की जांच में पता चला है कि ये ठग फर्जी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म और म्यूल बैंक अकाउंट्स का उपयोग कर लोगों से करोड़ों रुपए ठग चुके हैं। इस गिरोह के अन्य सदस्यों की तलाश जारी है।

पुलिस अधिकारी के अनुसार, 47 वर्षीय कारोबारी, जो कि महेंद्रू एन्क्लेव का निवासी है, अपनी स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं। आरोपियों ने उन्हें एक नकली प्लेटफॉर्म के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी में निवेश का लालच दिया और पीड़ित ने साइबर ठगों द्वारा उपलब्ध कराए गए विभिन्न बैंक खातों में लगभग 39.5 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए।

पुलिस की जांच और गिरफ्तारी

जैसे ही इस मामले की शिकायत मिली, पुलिस ने कार्रवाई शुरू की। जांच के दौरान करोल बाग में एक प्राइवेट बैंक में 'आरएस मैनेजमेंट सर्विसेज' नाम से संचालित म्यूल अकाउंट का पता लगाया गया। इस अकाउंट में ठगी की रकम में से 10 लाख रुपए जमा किए गए थे। यह अकाउंट कम से कम नौ साइबर अपराध रिपोर्टों से जुड़ा पाया गया।

पुलिस ने तकनीकी निगरानी और खुफिया जानकारी के आधार पर मुख्य आरोपी कृष्ण कुमार उर्फ मोनू को गिरफ्तार किया। इस दौरान उसकी निशानदेही पर दीपू नाम के एक अन्य आरोपी को भी पकड़ लिया गया, जिसने म्यूल अकाउंट्स का प्रबंधन किया था।

साइबर ठगों की कार्यप्रणाली

ये ठग आमतौर पर निम्नलिखित तरीकों से लोगों को धोखा देते हैं:

  • फर्जी वेबसाइट्स: ठग खुद को एक प्रामाणिक क्रिप्टो प्लेटफॉर्म के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
  • भारी मुनाफे का लालच: निवेशकों को त्वरित और भारी लाभ का दावा करके फंसाते हैं।
  • म्यूल अकाउंट्स: ठग फर्जी बैंक खातों का उपयोग करते हैं ताकि धन की ट्रेसिंग मुश्किल हो जाए।
  • सोशल इंजीनियरिंग: ठग निवेशकों को विश्वास में लेकर उन्हें अधिक पैसे ट्रांसफर करने के लिए मनाते हैं।

गिरोह के सदस्य और उनकी भूमिका

दीपू ने म्यूल अकाउंट्स की व्यवस्था की और निवेशकों को यह समझाने का प्रयास किया कि उनके पैसे गेमिंग गतिविधियों से जुड़े हैं। इसके अलावा, उसके साथी अरविंद और इरफान शेख भी शामिल थे, जो ठगी के लेनदेन की निगरानी करते थे। इरफान पर पहले भी एक मामले में गिरफ्तारी का आरोप है।

ये आरोपी अपने ठगी के पैसे तेजी से विभिन्न बैंक खातों में स्थानांतरित करते थे, जिससे पुलिस के लिए ट्रांजैक्शन को ट्रेस करना मुश्किल हो जाता था। इस प्रक्रिया को 'लेयर्ड ट्रांजैक्शन' कहा जाता है, जो ठगों के लिए एक सुरक्षित तरीका है।

पुलिस की कार्रवाई और आगे की योजनाएँ

पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया है। इस गिरोह के अन्य सदस्यों की तलाश जारी है और पुलिस ठगी गए पैसे की रिकवरी के लिए भी प्रयास कर रही है।

पुलिस ने यह भी बताया कि इस प्रकार के साइबर अपराधों को रोकने के लिए जागरूकता आवश्यक है। लोगों को फर्जी निवेश योजनाओं के प्रति सतर्क रहना चाहिए और किसी भी अनजान स्रोत से धन निवेश करने से पहले पूरी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

साइबर ठगी से कैसे बचें?

साइबर ठगों से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं:

  • सत्यापन: किसी भी वेबसाइट या प्लेटफॉर्म की प्रामाणिकता की जांच करें।
  • संदेहास्पद प्रस्तावों से बचें: भारी मुनाफे का लालच देने वाली योजनाओं से दूर रहें।
  • व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें: किसी भी अनजान व्यक्ति के साथ अपनी व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें।
  • नियमित निगरानी: अपने बैंक खातों और क्रेडिट रिपोर्ट की नियमित रूप से जांच करें।

साइबर ठगी एक गंभीर मुद्दा है जिसकी रोकथाम के लिए समाज को एकजुट होकर प्रयास करने की आवश्यकता है। पुलिस की कार्रवाई और जागरूकता के माध्यम से हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।

एक संबंधित वीडियो में इस मामले की अधिक जानकारी और साइबर ठगी के तरीके पर चर्चा की गई है, जिसे आप यहाँ देख सकते हैं:

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