कॉलेजियम फैसले पर विवाद, CJAR ने सुप्रीम कोर्ट पर आरोप लगाया

सूची
  1. सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं
  2. जस्टिस नागरत्ना की असहमति का विवरण
  3. कॉलेजियम प्रणाली की पारदर्शिता पर उठते सवाल
  4. क्या जरूरी है न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता?
  5. सम्बंधित ख़बरें और वीडियो

सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर चल रहा विवाद एक बार फिर से सुर्खियों में है। यह मामला न केवल न्यायपालिका की पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे न्यायिक नियुक्तियों में विभिन्न कारक कार्य करते हैं। चलिए, इस मुद्दे पर गहराई से नजर डालते हैं और समझते हैं कि यह विवाद किस प्रकार न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं

हाल ही में, न्यायपालिका की एक महत्वपूर्ण संस्था, कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) ने सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। संगठन ने जस्टिस बी.वी. नागरत्ना द्वारा लिखे गए असहमति नोट को सार्वजनिक करने की मांग की है, जिसे अभी तक सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है। यह नोट जस्टिस नागरत्ना ने पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस विपुल मनुभाई पंचोली की नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए लिखा था।

कॉलेजियम की बैठक में, जो 25 अगस्त को हुई थी, जस्टिस पंचोली की नियुक्ति पर 4:1 का विभाजित फैसला लिया गया। जस्टिस नागरत्ना ने इस फैसले के खिलाफ एक मजबूत असहमति नोट दर्ज किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि जस्टिस पंचोली की नियुक्ति न्याय प्रशासन में नकारात्मक प्रभाव डालेगी। यह अपने आप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पहली बार है जब जस्टिस नागरत्ना ने इस तरह का असहमति नोट लिखा है, जो न्यायिक प्रणाली में उनके संकोच को दर्शाता है।

जस्टिस नागरत्ना की असहमति का विवरण

जस्टिस नागरत्ना ने अपने असहमति नोट में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जस्टिस पंचोली की वर्तमान स्थिति, जो कि जजों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में 57वें स्थान पर है, उन्हें इस पद के लिए अस्वीकृत करती है। इसके आलावा, उन्होंने कुछ प्रमुख बिंदुओं को उजागर किया:

  • जस्टिस पंचोली की सिफारिश करते समय कई मेधावी और वरिष्ठ जजों को नजरअंदाज किया गया।
  • जस्टिस पंचोली का भविष्य में CJI बनने की संभावना संस्थान के हित में नहीं है।
  • उनकी नियुक्ति से कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता को खतरा होगा।

कॉलेजियम प्रणाली की पारदर्शिता पर उठते सवाल

CJAR ने 25 अगस्त को जारी कॉलेजियम के बयान को निराशाजनक बताया है। संगठन का कहना है कि इस बयान में वो सभी जानकारी शामिल नहीं है, जो पहले के मामलों में होती थी। उदाहरण के लिए:

  • उम्मीदवारों के बैकग्राउंड की जानकारी का अभाव।
  • कॉलेजियम के सदस्यों की संपूर्णता का उल्लेख नहीं किया गया।
  • यह स्पष्ट नहीं किया गया कि जस्टिस पंचोली को वरीयता क्यों दी गई, जबकि वे वरिष्ठता में पीछे हैं।

CJAR ने जस्टिस नागरत्ना के असहमति नोट को सार्वजनिक करने की मांग की है, ताकि आम जनता और न्यायिक समुदाय को इस परिप्रेक्ष्य में अधिक जानकारी मिल सके। यह पारदर्शिता न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

क्या जरूरी है न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता?

न्यायपालिका के लिए पारदर्शिता एक आवश्यक तत्व है। यह न केवल न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता को बढ़ाता है, बल्कि इसके साथ ही नागरिकों का विश्वास भी जगाता है। न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:

  1. जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को सार्वजनिक करना।
  2. उम्मीदवारों के बैकग्राउंड की जानकारी को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करना।
  3. कॉलेजियम के सदस्यों की बैठक के मिनट्स को प्रकाशित करना।
  4. जनता से फीडबैक प्राप्त करना और उसे ध्यान में रखना।

ऐसे कदम उठाकर, न्यायपालिका और कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता को बढ़ाया जा सकता है। इससे न केवल न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार होगा, बल्कि आम जनता का न्यायपालिका में विश्वास भी मजबूत होगा।

सम्बंधित ख़बरें और वीडियो

इस मुद्दे से संबंधित कई समाचार और वीडियो उपलब्ध हैं, जो इस विवाद को और भी स्पष्टता प्रदान करते हैं। इनमें से एक वीडियो है:

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही महत्वपूर्ण हैं। CJAR के उठाए गए सवाल और जस्टिस नागरत्ना की असहमति इस बात की ओर इशारा करती हैं कि न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता है। यह सभी नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

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